पुत्र प्राप्ति का साधन है शीतला षष्ठी व्रत


पुत्र प्राप्ति का साधन है शीतला षष्ठी व्रत
माघ शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता है। कहीं-कहीं इसे 'बासियौरा' नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार-पूर्वक पूजन करना चाहिये। इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।

शीतला षष्ठी व्रतकथा
एक ब्राह्मण के सात बेटे थे। उन सबका विवाह हो चुका था, लेकिन ब्राह्मण के बेटों को कोई संतान नहीं थी। एक दिन एक वृद्धा ने ब्राह्मणी को पुत्र-वधुओं से शीतला षष्ठी का व्रत करने का उपदेश दिया। उस ब्राह्मणी ने श्रद्धापूर्वक व्रत करवाया। वर्ष भर में ही उसकी सारी वधुएं पुत्रवती हो गई।

एक बार ब्राह्मणी ने व्रत की उपेक्षा करके गर्म जल से स्नान किया। भोजना ताजा खाया और बहुओं से भी वैसा करवाया। उसी रात ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न देखा। वह चौंक पड़ी। उसने अपने पति को जगाया; पर वह तो तब तक मर चुका था। ब्राह्मणी शोक से चिल्लाने लगी। जब वह अपने पुत्रों तथा बधुओं की ओर बढ़ी तो क्या देखती है कि वे भी मरे पड़े हैं। वह धाड़ें मारकर विलाप करने लगी। पड़ोसी जाग गये। उसे पड़ोसियों ने बताया- ''ऐसा भगवती शीतला के प्रकोप से हुआ है।''
ऐसा सुनते ही ब्राह्मणी पागल हो गई। रोती-चिल्लाती वन की ओर चल दी। रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली। वह अग्नि की ज्वाला से तड़प रही थी। पूछने पर मालूम हुआ कि वह भी उसी के कारण दुखी है। वह बुढ़िया स्वयं शीतला माता ही थी। अग्नि की ज्वाला से व्याकुल भगवती शीतला ने ब्राह्मणी को मिट्टी के बर्तन में दही लाने के लिए कहा। ब्राह्मणी ने तुरन्त दही लाकर भगवती शीतला के शरीर पर दही का लेप किया। उसकी ज्वाला शांत हो गई। शरीर स्वस्थ होकर शीतल हो गया।

ब्राह्मणी को अपने किए पर बड़ा पश्चाताप हुआ। वह बार-बार क्षमा मांगने लगी। उसने अपने परिवार के मृतकों को जीवित करने की विनती की। शीतला माता ने प्रसन्न होकर मृतकों के सिर पर दही लगाने का आदेश दिया। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया। उसके परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे। तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ। ऐसी मान्यता है।

 

 

 

पुत्र प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी व्रत की परम्परा


कार्तिक माह में कश्ष्ण पक्ष की अष्टमी को पुत्रवती स्त्रियां निर्जल व्रत रखती हैं। संध्या समय दीवार पर आठ कानों वाली एक पुतली अंकित की जाती है। जिस स्त्री को बेटा हुआ हो अथवा बेटे का विवाह हुआ हो तो उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए। एक थाली में सात जगह चार-चार पूडयां रखकर उन पर थोडा-थोडा हलवा रखें। इसके साथ ही एक साडी ब्लाउज उस पर सामर्थ्यानुसार रुपए रखकर थाली के चारों ओर हाथ फेरकर श्रद्धापूर्वक सास के पांव छूकर वह सभी सामान सास को दे दें। हलवा पूरी लोगों को बांटें। पुतली के पास ही स्याऊ माता व उसके बच्चे बनाए जाते हैं। इस दिन शाम को चंद्रमा को अर्ध्य देकर कच्चा भोजन खाया जाता है तथा यह कथा पढी जाती है-
कथा
ननद-भाभी एक दिन मिट्टी खोदने गई। मिट्टी खोदते-खोदते ननद ने गलती से स्याऊ माता का घर खोद दिया। इससे स्याऊ माता के अण्डे टूट गये व बच्चे कुचले गये। स्याऊ माता ने जब अपने घर व बच्चों की दुर्दशा देखी तो क्रोधित होकर ननद से बोली कि तुमने मेरे बच्चों को कुचला है। मैं तुम्हारे पति व बच्चों को खा जाउंगी।
स्याऊ माता को क्रोधित देख ननद तो डर गई। पर भाभी स्याऊ माता के आगे हाथ जोडकर विनती करने लगी तथा ननद की सजा स्वयं सहने को तैयार हो गई। स्याऊ माता बोलीं कि मैं तेरी कोख व मांग दोनों हरूंगी। इस पर भाभी बोली कि मां तेरा इतना कहना मानो कोख चाहे हर लो पर मेरी मांग न हरना। स्याऊ माता मान गईं।
समय बीतता गया। भाभी के बच्चा पैदा हुआ और शर्त के अनुसार भाभी ने अपनी पहली संतान स्याऊ माता को दे दी। वह छह पुत्रों की मां बनकर भी निपूती ही रही। जब सातवीं संतान होने का समय आया तो एक पडोसन ने उसे सलाह दी कि अब स्याऊ मां के पैर छू लेना, फिर बातों के दौरान बच्चे को रुला देना। जब स्याऊ मां पूछे कि यह क्यों रो रहा है तो कहना कि तुम्हारे कान की बाली मांगता है। बाली देकर ले जाने लगे तो फिर पांव छू लेना। यदि वे पुत्रवती होने का आर्शीवाद दें तो बच्चे को मत ले जाने देना।
सातवीं संतान हुई। स्याऊ माता उसे लेने आईं। पडोसन की बताई विधि से उसने स्याऊ के आंचल में डाल दिया। बातें करते-करते बच्चे को चुटकी भी काट ली। बालक रोने लगा तो स्याऊ ने उसके रोने का कारण पूछा तो भाभी बोलीं कि तुम्हारे कान की बाली मांगता है। स्याऊ माता ने कान की बाली दे दी। जब चलने लगी तो भाभी ने पुनः पैर छुए, तो स्याऊ माता ने पुत्रवती होने का आर्शीवाद दिया तो भाभी ने स्याऊ माता से अपना बच्चा मांगा और कहने लगीं कि पुत्र के बिना पुत्रवती कैसे?
स्याऊ माता ने अपनी हार मान ली। तथा कहने लगीं कि मुझे तुम्हारे पुत्र नहीं चाहिएं मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रही थी। यह कहकर स्याऊ माता ने अपनी लट फटकारी तो छह पुत्र पश्थ्वी पर आ पडे। माता ने अपने पुत्र पाए तथा स्याऊ भी प्रसन्न मन से घर गईं।
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