धनवान के मन में होती है ऐसी हलचल..सुकून के लिए जानें 1 निदान

धन सुखी, शांत व स्थिर जीवन का अहम जरिया है। धर्मग्रंथ भी अर्थ के रूप में जीवन के लिए जरूरी 4 पुरूषार्थ में शामिल कर धन की उपयोगिता को उजागर और प्रमाणित करते हैं। वैभव, ऐश्वर्य, सम्मान, यश, सुविधा जैसे अनेक रूपों में धन सुख का साधन है। जीवन में निराशा और असफलता के वक्त भी धन का संग मिल जाए तो मन और तन को नई जीवन शक्ति प्राप्त होती है।

जीवन में सुख प्राप्ति के लिए धन की इतना अहमियत होने के बावजूद भी यही धन जीवन में अनेक दु:ख व परेशानियों का कारण भी बन जाता है। व्यावहारिक जीवन में धन कैसे और कब धन सुख-चैन छिन लेता है? इन बातों का धर्मग्रंथ साफ करते हैं। जिनका जानकर कोई भी इंसान धनवान हो या धन का अभाव, हर स्थिति में जीवन में संतुलन और संयम बनाए रख सकता है -

लिखा गया है कि -

अर्थस्योपार्जने दु:खमर्जितस्यापि रक्षणे।

आये दु:खं व्यये दु:खमर्थेभ्यश्च कुत: सुखम्।।

चौरेभ्य: सलिलादग्रे: स्वजनात् पार्थिवादपि।

भयमर्थवतां नित्यं मृत्यो: प्राणभृतामिव।।

खे यातं पक्षिभिर्मांसं भक्ष्यते Ÿवापदैर्भुवि।

जले च भक्ष्यते सर्वत्र वित्तवान्।।

विमाहयन्ति सम्पत्सु तापयन्ति विपत्तिषु।

खेदयन्त्र्जनाकाले कदा ह्यर्था: सुखवहा:।।

यथार्थपतिरुद्विग्रो यश्च सर्वार्थनि:स्पृह:।

यतश्चार्थपतिर्दु:खी सुखी सर्वार्थनि:स्पृह:।।

इन बातों में धन के  रूप में कामनाओं को दु:ख का कारण बताकर उनसे दूर रहने का संकेत भी है। सरल शब्दों में अर्थ यही है कि धन या दौलत कमाने, फिर उसकी रक्षा करने और उपयोग करने तीनों ही स्थितियों में कष्ट प्राप्त होता है। ठीक उसी तरह जैसे मांस को आसमान, जमीन या पानी में फेंकने पर क्रमश: पक्षी, कुत्ते या मछली खा जाते हैं। क्योंकि धन मिलने पर उससे पैदा मोह ही धन के नाश होने पर दु:ख पैदा करता है। यही नहीं धनवान को चोर, आग, शासन, परिजन या पानी से भी धन नाश का भय बना रहता है।

यही कारण है कि धन हर काल में सुख का कारण नहीं होता। असल में, इस बात के  जरिए धन की भांति ही इच्छाओं पर संयम और संयम से सुख का अहम सूत्र भी मिलता है।

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