लालकिताब की शुरुआत

लालकिताब की शुरुआत 

ज्योतिष जानए वालों के लिये लालकिताब कोई नया नाम नही है,यह भारत के उत्तरी भाग में बहुत ही प्रचलित है,ज्योतिष में विश्वास रखने वाला कोई भी व्यक्ति लालकिताब को पढने के बाद उससे दूर नही जा सकता है,सभी ज्योतिषकर्ता इस पर अटूट विश्वास करता है.
आंख बन्द कर और बिना कुंडली देखे जब किसी के प्रति उपाय दिया जाता है,तो मान लिया जाता है कि सामने वाला लालकिताब का जानकार है,कठिनाई को जानकर और समझ कर कि यह कठिनाई किस ग्रह के द्वारा दी जा रही है,उसी ग्रह का उपाय दे दिया जाता है,और कठिनाई ठीक हो जाती है.
जैसे जब कुन्डली में राहु खराब होता है,तो दिमागी तकलीफ़ें बढ जाती है,बिना किसी कारण के दिमाग में पता नही कितनी टेन्सन पैदा हो जाती है,बिना किसी कारण के सामने वाले पर शक किया जाने लगता है,और जो अपने होते हैं वे पराये हो जाते है,और जो पराये और घर को बिगाडने वाले होते है,उन पर जानबूझ कर विश्वास किया जाता है,घर के मुखिया का राहु खराब होता है,तो पूरा घर ही बेकार सा हो जाता है,संतान अपने कारणो से आत्महत्या तक कर लेती है,पुत्र या पुत्र वधू का स्वभाव खराब हो जाता है,वह अपने शंकित दिमाग से किसी भी परिवार वाले पर विश्वास नही कर पाती है,घर के अन्दर साले की पत्नी,पुत्रवधू,मामी,भानजे की पत्नी,और नौकरानी इन सबकी उपाधि राहु से दी जाती है,कारण केतु का सप्तम राहु होता है,और राहु के खराब होने की स्थिति में इन सब पर असर पडना चालू हो जाता है,राहु के समय में इन लोगों का प्रवेश घर के अन्दर हो जाता है,और यह लोग ही घर और परिवार में फ़ूट डालना इधर की बात को उधर करना चालू कर देते है,साले की पत्नी घर में आकर पत्नी को परिवार के प्रति उल्टा सीधा भरना चालू कर देती है,और पत्नी का मिजाज गर्म होना चालू हो जाता है,वह अपने सामने वाले सदस्यों को अपनी गतिविधियों से परेशान करना चालू कर देती है,उसके दिमाग में राहु का असर बढना चालू हो जाता है,और राहु का असर एक शराब के नशे के बराबर होता है,वह समय पर उतरता ही नही है,केवल अपनी ही झोंक में आगे से आगे चला जाता है,उसे सोचने का मौका ही नही मिलता है,कि वह क्या कर रहा है,जबकि सामने वाला जो साले की पत्नी और पुत्रवधू के रूप में कोई भी हो सकता है,केवल अपने स्वार्थ के लिये ही अपना काम निकालने के प्रति ही अपना रवैया घर के अन्दर चालू करता है,उसका एक ही उद्देश्य होता है,कि राहु की माफ़िक घर के अन्दर झाडू लगाना और किसी प्रकार के पारिवारिक दखलंदाजी को समाप्त कर देना,गाली देना,दवाइयों का प्रयोग करने लग जाना,शराब और तामसी कारणो का प्रयोग करने लग जाना,लगातार यात्राओं की तरफ़ भागते रहने की आदत पड जाना,जब भी दिमाग में अधिक तनाव हो तो जहर आदि को खाने या अधिक नींद की गोलियों को लेने की आदत डाल लेना,अपने ऊपर मिट्टी का तेल या पैट्रोल डालकर आग लगाने की कोशिश करना,राहु ही वाहन की श्रेणी में आता है,उसका चोरी हो जाना,शराब और शराब वाले कामो की तरफ़ मन का लगना,शहर या गांव की सफ़ाई कमेटी का सदस्य बन जाना,नगर पालिका के चुनावों की तरफ़ मन लगना,घर के किसी पूर्वज का इन्तकाल हो जाना और अपने कामों की बजह से उसके क्रिया कर्म के अन्दर शामिल नही कर पाना आदि बातें सामने आने लगती है,जब व्यक्ति इतनी सभी बातो से ग्रसित हो जाता है,तो राहु के लिये वैदिक रीति से काफ़ी सारी बातें जैसे पूजा पाठ और हवन आदि काम बताये जाते है,जाप करने के लिये राहु के मन्त्रों को बताया जाता है,राहु के लिये गोमेद आदि को पहिनने के लिये रत्नों का काम बताया जाता है,लेकिन लालकिताब के अन्दर साधारण सा उपाय दिया गया है,कि घर के अन्दर सभी खोटे सिक्के और न प्रयोग में आने वाले बेकार के राहु वाले सामान जैसे कि झाडू और दवाइयों को बहते हुए पानी के अन्दर प्रवाहित कर देना चाहिये,इस छोटे से उपाय के बाद जब राहत मिल जाती है,जो क्यों नही लोग लालकिताब पर विश्वास करेंगे.
परिवार में चन्द्रमा के खराब होने की पहिचान होती है कि घर के किसी व्यक्ति को ह्रदय वाली बीमारी हो जाती है,और घर का पैसा अस्पताल में ह्रदय रोग को ठीक करने के लिये जाने लगता है,ह्रदय का सीधा सा सम्बन्ध नशों से होता है,किसी कारण से ह्रदय के अन्दर के वाल्व अपना काम नही कर पाते है,उनके अन्दर अवरोध पैदा हो जाता है,और ह्रदय के अन्दर आने और जाने वाले खून की सप्लाई बाधित हो जाती है,लोग अस्पताल में जाते है,लाखो रुपये का ट्रीटमेंट करवाते है,दो चार साल ठीक रहते है फ़िर वहीं जाकर अपना इलाज करवाते है,मगर हो वास्तब में होता है,उसके ऊपर उनकी नजर नही जाती है,ह्रदय रोग के लिये चन्द्रमा बाधित होता है,तभी ह्रदय रोग होता है,और चन्द्रमा का दुश्मन लालकिताब के अनुसार केवल बुध को ही माना गया है,कुन्डली का तीसरा भाव ही ह्रदय के लिये जिम्मेदार माना जाता है,इसका मतलब होता है,कि कुन्डली का तीसरे भाव का चन्द्रमा खराब है,इस के लिये बुध का उपाय करना जरूरी इसलिये होता है कि बुध ही नशों का मालिक होता है,और किसी भी शारीरिक प्रवाह में अपना काम करता है,बुध के उपाय के लिये कन्या भोजन करवाना और कन्या दान करना बहुत उत्तम उपाय बताये जाते है,इसके अलावा तुरत उपाय के लिये कन्याओं को हरे कपडे दान करना और कन्याओं को खट्टे मीठे भोजन करवाना भी बेहतर उपाय बताये जाते है.
स्नायु रोगों के लिये बुध को ही जिम्मेदार माना जाता है,संचार का मालिक ग्यारहवां घर ही माना जाता है,आज के वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है,कि किसी भी प्रकार से ग्यारहवां घर शनि का घर नही है,शनि कर्म का दाता है,और शनि के लिये संचार का मालिक होना नही के बराबर है,युरेनस को संचार का मालिक कहा गया है,और ग्यारहवा,सातवां और तीसरा घर आपस में मुख्य त्रिकोण भी बनाते है,इस प्रकार से यह त्रिकोण जीवन साथी या साझेदार के साथ अपना लगाव भी रखता है,स्नायु रोग का मुख्य कारण अति कामुकता होती है,वीर्य जो शरीर का सूर्य होता है,और इस सूर्य का सहगामी और सबसे पास रहने वाला ग्रह बुध ही इसे संभालकर रखता है,अगर किसी प्रकार से यूरेनस की चाल इसकी समझ मे आजाता है,तो यह शरीर के अन्दर लगातार चलता रहता है,इसके चलते ही और अपने को प्रदर्शित करने के चक्कर में यह उल्टी सीधी जगह पर चला जाता है,दिमाग में विरोधी सेक्स के प्रति अधिक चाहत रहने से यह अपने को अपने स्थान पर रोक नही पाता है,और खराब हो जाता है,इसके कारण ही नशों में दुर्बलता और चेहरे की चमक चली जाती है,हाथ पैर और शरीर के अवयव सुन्न से हो जाते है,दिमाग में कितनी ही कोशिशों के बाद भी कोई बात नही बैठ पाती है,याददास्त कमजोर हो जाती है,कोई भी किया गया काम कुछ समय बाद दिमाग से निकल जाता है,बुध के उपाय के लिये कन्याओं को भोजन करवाना,और कन्या के प्रति श्रद्धा रखने से यह विचारों में परिवर्तन लाता है,और दिमागी हालत को ठीक रखने में अपना योगदान करता है,ब्राह्मण जो गुरु का कारक होता है,को पेठा जो बुध और मंगल की युति का बखान करता है,को दान करना उत्तम माना जाता है,सबसे अधिक प्रभाव स्नायु रोग के होने का दांतो पर पडता है,दांतो के द्वारा पता चलता है,कि स्नायु रोग है,इसके लिये फ़िटकरी से दांत साफ़ करना भी अचूक उपायों के अन्दर आता है.

आजके भौतिक कारणों के अन्दर आपने देखा होगा कि बाप के प्रति पुत्र का व्यवहार खराब हो जाता है,उसे अपने पिता की कोई भी बात ठीक नही लगती है,वह जब तक पिता के ऊपर निर्भर रहता है,तब तक ही पिता को मानता है,और जैसे ही पिता की निर्भरता से छुटकारा मिला वह पिता को ठेंगे पर रख लेता है,पिता पुत्र का आपस का सामन्जस्य जब खराब हो जाता है,तो आपसी खून का सम्बन्ध होने के कारण कटुता बहुत अधिक ही बढती चली जाती है,और कारण कभी कभी यहां तक बन जाते है कि दोनो एक दूसरे के खून के प्यासे भी होते देखे गये है,इसकी एक पहिचान और है,कि पेशाब में तकलीफ़ मिलनी चालू हो जाती है,और जब यह तकलीफ़ चालू हो तो समझना चाहिये कि पुत्र का व्यवहार अब बदलने की तरफ़ है,यह सब केतु की करामात है,इस के लिये लालकिताब में कहा गया है कि मन्दिर में कम्बल का दान करिये,और हाथ की उंगली में चांदी का छल्ला धारण करिये.
पत्नी का स्वास्थ्य खराब है,विवाह तो कर लिया लेकिन आपस की अनबन चल रही है,दोनो एक दूसरे से लगातार दूरियां बनाते चले जा रहे है,समाज और परिवार के लोग भी दोनो के अन्दर अपने अपने प्रकार से हवा भर रहे है,इस प्रकार से शादी जो कि दाम्पत्य सुख को पूरा करने के लिये की गयी थी,वह टेंसन में चली गयी है,इसका मतलब सीधा है कि पुरुष की कुन्डली में शुक्र खराब है,और स्त्री की कुन्डली में मंगल खराब है,दोनो के लिये रसोई में बनने वाले खाने के पहले जब तवा चूल्हे पर रखा जाता है,उस समय तवे को गर्म होते ही उसपर पानी के छींटे देकर किसी साफ़ कपडे से तवे को साफ़ कर लिया जावे,घर में शांति आनी चालू हो जायेगी,साथ ही जब भी खाना खाया जाये तो अपने खाने से एक ग्रास गाय के लिये निकाल दिया जावे,यह शुक्र का उपाय है.

गाय का ग्रास निकालना,कुत्तों को रोटी देना,ब्राह्मण को पेठा देना,कन्याओं को भोजन करवाना,उनकी पूजा करना,चांदी की रिंग पहिनना,बहते पानी में खोटे सिक्के डालना शुभ है,और कल्याणकारी है,यह विश्वास हमारे समाज में संस्कार के रूप में शामिल हो चुका है,इलाज से उपचार को ठीक मानने वाले बुद्धिमान लोग तो उपाय करते है,और सुखी भी रहते है,लेकिन जो ठिठोली में इलाज करने से तो चूकते है,और अपनी तर्क द्वारा इलाज करने वाले को भी गुमराह करते है,वे अपनी तो बिगाडते ही है,दूसरों के ऊपर भी प्रयाघात करते हैं.
लालकिताब के अन्दर सभी ग्रहों को भविष्य कथन का आधार बनाया गया है,कुन्डली के भावों को महत्ता दी गयी है,उसमे राशियों के लिये कोई स्थान नही है,जो लकीर के फ़कीर होते है वे इस की गुनवत्ता को समझे बिना इसकी अवहेलना करते है,किन्तु मजे की बात है कि वे जो अवहेलना करते है,वे लालकिताब के टोटकों के कायल भी है,वे जब खाना खाने बैठते हैं तो अपने खाने को देखकर कुत्ते बिल्ली की तरह टूट नही पडते है,वे खाने को अन्नदेवता मानकर उसकी मान्यता मन में मानते है,शादी के बाद अपनी पत्नी का नाम बदलते है,अपने नाम के आगे या पीछे अपने माता या पिता का नाम भी लगाते है,जमीनी खनिज जो ग्रहों के रूप में मिलते है,जिन्हे हीरा जवाहारात कहते है,उन्हे सोने और चांदी में धारण भी करते है,जब कोई इनसे पूंछता है कि यह क्यों धारण किया है,तो जबाब देतेहै कि अमुक रत्न उनके लिये भाग्यशाली है,अपनी कम्पनी या फ़र्म का नाम रखते समय किसी न किसी से राय लेते है,कुत्तों को पालकर उनको रोटी देते है,रेलगाडी से जब यात्रा कर रहे होते है,तो पुल से गुजरने के समय मानसिक रूप से प्रणाम भी करते है,किसी शवयात्रा के सामने आने पर शव के रूप में जाने वाले को प्रणाम भी करते है,अपने किसी खास इष्ट सज्जन के पधारने के बाद उनकी याद में चैरिटीवल ट्रस्ट की स्थापना भी करते है,यह सब बातें करने के बाद एक बात का तो पता लगता है कि लोग आम के फ़ल को तो खाते है,और उसी आम की जड को काटने से उनको कोई परहेज नही होता है.
लालकिताब के टोटकों के लिये शास्त्रीय ज्योतिष से तुलना करना उसी प्रकार से है,जैसे अंगूर में तरबूज के गुण ढूंडना,एक का आधार शास्त्र है,और दूसरे का आधार व्यवहारिक ज्ञान,जो काम सबसे अधिक आता है वह व्यवहारिक ज्ञान ही आता है,किताब में या शास्त्र में लिखा हुआ तो किसी कारण से बदल भी सकता है,लेकिन व्यवहारिकता के चलते जो भोगा जा चुका है,और कारण और निवारण जो सामने आ चुके होते है,उनको कहने के लिये बीता हुआ ही कहा जायेगा,यही बात लालकिताब के लिये मानी जाती है.शास्त्रीय ज्योतिष का शुभारम्भ ब्रह्मा,नारद,पराशर,जैमिनी और वाराहमिहिर जैसे महापुरुषो से चालू हुई,और विद्वानो के द्वारा इस विषय को बहुत ही सूक्षमता से निहारा गया,उसके बाद समय और काल के प्रभाव से इसका विकास होना चालू हो गया,लेकिन यह जरूरी नही है,कि हर आदमी ही गणित और सूत्रों से अपने को प्रबुद्ध बना कर रखे,इसलिये ही इस लालकिताब की रचना हुई कि आम आदमी भी इसके प्रभाव से अपने को सुखी रखे,और उसका भरपूर लाभ लेकर अपने को जीवन के सागर से आराम से पार उतर जावे,इसके बाद भी यही कहा जा सकता है,कि जिसकी प्यास जहां पर बुझती है,वह वहीं का रास्ता पकड लेता है,किसी की प्यास समुद्र से बुझती है,किसी की प्यास घर में रखे घडे के पानी से ही बुझ जाती है.
महाकवि कालिदास ने रघुवंश नामक पुराण में लिखा है,कि वृक्ष का महत्व फ़ल देने से होता है,उत्तम फ़ल देने वाले वृक्ष को संदेह से नही देखा जाना चाहिये,दवाई का महत्व उसकी रोग निवारक क्षमता से देखा जाता है,एक रुपये की जडी बूटी अगर किसी रोग को निकालने के प्रति सक्षम है,तो वह रामबाण औषधि के रूप में गिनी जायेगी,यही बात लालकिताब के बारे में जानी जा सकती है,लालकिताब का उद्देश्य सामान्य जन को लाभ देने से है,किसी प्रकार से किसी बडे फ़ायदे के लिये नही है,इस किताब का मूल्य वे ही जान सकते है,जिन लोगों ने अपने को केवल और केवल जनता के लिये ही पैदा किया हुआ है,जिन्हे अपने आरे में ख्याल नही है.

लालकिताब की आचार संहिता

लालकिताब के बारे में जन समुदाय के अन्दर एक बात व्याप्त है कि यह एक टोटकों की किताब है,लेकिन यह क्या है इसे अन्दर से समझ कर कहना ही अच्छा रहेगा,लालकिताब टोटकों की किताब वास्तव मै है,यह मै भी कहूंगा,लेकिन जो टोटके है वे किसी भी प्रकार से ब्लैक-मैजिक से जुडे नही है,वे सभी जन समुदाय में एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारियों को निभाने से लगाव रखते है,लालकिताब की आचार संहिता से आपको पता लग जायेगा कि यह टोटके क्या है,और इनका मूल उद्देश्य क्या है.आचार संहिता की हर बात कुन्डली के भावों से अपना वास्ता रखती है,अगर आपको कुन्डली के भाव और ग्रह के बारे में पूरा ज्ञान है तो आप आराम से इस आचार संहिता को समझ सकते है.आइये इसकी आचार संहिता के बारे में अपना मत प्रकाशित करने की कोशिश करते है:-

१. लालकिताब का पहला उसूल है कि "झूठ न बोले"

कुन्डली का दूसरा भाव बोलने और तीसरा भाव बोलने की कला से जुडा होता है,दूसरे भाव का मतलब तुम्हारे पास जो भी भौतिक रूप से विद्यमान है,और तीसरा भाव उस भौतिकता से क्या कर सकते हो और दूसरों पर अपनी छाप किस प्रकार से डाल सकते हो,झूठ बोलने से दूसरे और तीसरे भाव पर अपने आप गलत असर चला जाता है,मनुष्य के तीन काम सबसे उच्च के माने जाते है,पहला मनसा दूसरा वाचा और तीसरा कर्मणा,मन से सोच लिया जाये,वाणी से कह दिया जाय और कर्म से उसे कर दिया जाये,तीनो की मान्यता बराबर की मानी जाती है.झूठ बोलने वाला पहले मन से किसी बात को सोचेगा,और वाणी से उसे बनाकर कहेगा,फ़िर जो बोला है,उसकी साख रखने के लिये उसी प्रकार के कार्य करेगा,एक पाप के कारण कितने ही पाप वह लगातार करता चला जायेगा,वाणी बुध है,और बुध को अपने कारणो से खराब करने का मतलब है कि व्यापार को खराब करना,बुध ही लोगों से संचार करने के काम आता है,और इसके खराब होने का मतलब है,कि जो भी लोग आकर सांसारिक या सामाजिक रूप से जुडे थे,वे सब झूठ के कारण अलग हो गये,जो ह्रदय रूपी चन्द्रमा पर विश्वास रूपी सूर्य की छाप थी वह गन्दी हो गयी,और बिना किसी कारण के किसी प्रकार की कही हुई बात का जब आस्तित्व समाप्त हो गया तो फ़िर बचता ही क्या है,झूठ बोलने वाले तर्क का सहारा लेते है,और तर्क के द्वारा किसी को भी नीचा दिखाने की कोशिश करते है,यह नीचा दिखाने वाली बात सामने वाले को जिसे नीचा दिखाने की कोशिश की जा रही थी,वह सदा के लिये केवल बुराई को लेकर ही रहेगा,उसके सामने किसी भी बात के लिये कभी भी अपने को ऊंचा नही दिखा पाओगे,लालकिताब की पहली आचार संहिता का यही मूल उद्देश्य था कि व्यक्ति अपने जीवन में झूठ से बचना चाहिये,चाहे वह वाणी से हो,या फ़िर किसी प्रकार के रहन सहन से,अपने को सत्य ही दिखाते रहो,अगर किसी प्रकार से किसी की जान जा रही है,तो उसे बचाने के लिये बोला जाने वाला झूठ भी सौ सत्य के बराबर तभी माना जा सकता है,जब कि सामने वाला कभी भी झूठ नही बोला हो,राजा हरिश्चन्द्र की कथा का सभी को ज्ञान है,उन्होने अपने द्वारा प्रयोग की जाने वाली सत्यवादिता के कारण जो भी खो दिया था वह सब सत्य के कारण ही प्राप्त कर लिया था.

२. झूठी गवाही नही देनी चाहिये.

प्रकृति के कानून का सिद्धान्त होता है,कि वह नेचुरल-ला के ऊपर अपना विश्वास रखती है,प्रकृति कभी भी किसी प्रकार के बिना किये हुये कार्य को स्वीकार नही करती है,जैसे तीन व्यक्ति एक साथ जा रहे हो,और एक रास्ते में किसी प्रकार से गायब हो जाये,तो प्रकृति का नेचुरल-ला कहता है,कि साथ वाले जो दो लोग उस व्यक्ति के साथ थे, उन्ही को पता होगा,कि अमुक कहां गायब हो गया,अगर किसी प्रकार से उन दोनो को बचाने के लिये तीसरा कोई यह कहता है कि अमुक उनके साथ न होकर किसी और के साथ था,तो वह प्रकृति के नेचुरल-ला को बदलने की कोशिश कर रहा है,और इस बदले जाने वाले नियम के कारण जिसने झूठी गवाही दी है,कि उसने देखा है कि अमुक उन दोनो के साथ नही था,उन दोनो के द्वारा किये गये पाप का पूरा का पूरा भागी बनना पडेगा,यही बात सम्पत्ति और अन्य मामलों में मानी जाती है,कुन्डली का नवां भाव कानून से सम्बन्ध रखता है,और यही नवां भाव धर्म और भाग्य से जुडा होता है,जो नवें भाव के द्वारा किया जाता है,उसी प्रकार का कार्य दसवें भाव में प्रवाहित हो जाता है,और जो दसवें भाव में किया जाता है,उसी का फ़ल ग्यारहवें भाव से दिखाई देने लगता है,और जो ग्यारहवें भाव में दिखाई देता है,उसे अगर किसी प्रकार से कह कर या खर्च करके शांति प्राप्त की जावे,तो वही बारहवें भाव का कारक बन जाता है,साख का दाता ग्यारहवां भाव ही माना जाता है,और उसे अगर किसी प्रकार से बारहवें भाव में लेजाकर झूठ या फ़रेब के कारण खर्च कर दिया जावे,तो शांति की जगह अशांति ही मिलेगी.और जो लगन बारहवें भाव से दूसरा भाव होता है,और बारहवें भाव का भौतिक रूप से दिखाई देने वाला भाव है,सामने किसी न किसी प्रकार से जो किसी के प्रति झूठ कहा है,वह सामने आकर प्रकट हो जायेगा,चाहे वह संतान के रूप में हो या किसी अन्य रूप में शरीर में बीमारी के रूप में आकर प्रकट हो,वह होगा जरूर,इसी लिये लालकिताब की दूसरी आचार संहिता का नियम है कि झूठी गवाही नही देना चाहिये.

३. तीसरी आचार संहिता है कि "मुंह से अपशब्द नही निकालें"

४. किसी को गाली नही दें

मैने अपने गांव मे एक कहावत सुनी है,"जिभो चलें,और चंदो पिटें",इसका मतलब होता है कि मुंह से जीभ के द्वारा गाली दी जावे और सिर पर जूते पडें,यह कहावत सौ प्रति सही है,दूसरी बात और कही जाती है,कि "कम कुब्बत और गुस्सा ज्यादा,पिटने के इरादे हैं",शरीर से गाली और अपशब्द तभी निकलते हैं,जब कि शरीर मे बल नही होता है,बल कभी हुंकारता नही,और बलवान कभी मारता नही,यह भी सही है,बलवान होने से शरीर ही नही दिमाग भी बलवान होता है,उसके अन्दर सोचने समझने की शक्ति होती है,वह किसी को भी कुछ करने से पहले सोच लेता है,कि सामने वाला अगर मर गया तो वह तो मरेगा ही,साथ में वह किसी न किसी प्रकार खुद को भी मार देगा,एक सच्ची कहानी है,कि एक सज्जन के सामने रहने वाले पडौसी से किसी बात को लेकर अनबन हो गयी,जैसे ही वे सज्जन किसी काम से दरवाजे के बाहर निकलते,वह पडौसी एक ही बात कहता कि "ससुरे तुझे बरबाद कर दूंगा",वे सज्जन चुपचाप उसकी बात सुनते और अपने काम से चले जाते,यही सोचते कि अगर एक थप्पड भी लग गया,तो यह मर जायेगा,और वह तो मरेगा ही ,मेरे घर को भी बरबाद कर जायेगा,मगर समय कभी एक सा नही रहता,उन सज्जन के घर में किसी बात को लेकर तू तू मै मै हुई और वे गुस्सा से बाहर निकले,जैसे भी वे बाहर निकले सामने वाले ने फ़िर वही बात कह दी,सज्जन का आपा खत्म हो गया था,उन्होने आव देखा न ताव और एक थप्पड उस सामने वाले पडौसी के जड दिया,थप्पड के लगते ही वह तो टांय करके मर गया,पुलिस आयी और सामने वाले पडौसी की हत्या के जुम में उन सज्जन को पकड कर ले गयी और जेल में डाल दिया,जब वे जेल में अकेले बैठे थे,तो उनके दिमाग में एक ही बात चल रही थी,कि सामने वाले ने जो कहा,उसे पूरा कर दिया,उसने बरबाद कर ही दिया,इस प्रकार और कुछ दिन सुनते रहते तो शायद यह दिन नही देखना पडता,मुंह से अपशब्द बोलने के कारण कितने ही बरबाद हुये है,गाली आवत एक है,उलटत होइ अनेक,जो रहीम तुम चुपि रहो,तो वही एक की एक,सामने वाला कितनी ही गालियां देता है,अगर चुप रहा जाये,तो किसी न किसी दिन उसका अन्त हो ही जायेगा,अपने मुंह को खराब करने का मतलब है,कि हो जुबान से कहा है,वह सरस्वती है,किसी न किसी दिन तो उसे पूरा होना है,इसलिये लालकिताब का कहना है कि किसी प्रकार से मुंह से अपशब्द नही कहना चाहिये,"जो गुड खाकर मरे,तो विष काहे को देउ",सामने वाले को जो तुमसे जलन रखता है,उसे मीठी तरह से समझाने की कोशिश करनी चाहिये,उसे मीठे व्यवहार के द्वारा जीतना उतना ही सरल है जितना कि किसी व्यवहारिकता के कारण जीता हुआ युद्ध.

५. किसी भी प्रकार की क्रूरता नही करें.

मिट्टी का स्वभाव होता है,कि वह पैदा होने वाले जातक को दयावान और निर्दयी बना देती है,निर्दयी के अन्दर पानी की मात्रा कम होती है,वह शक्ल से दुबला पतला दिखाई देता है,लेकिन दयावान को दया के कारण कुछ समझ में भी नही आता है,और बुद्धू की उपाधि दी जाने लगती है,क्रूरता करने से ह्रदय मर जाता है,दिल की जगह पत्थर का टुकडा रखा होता है,किसी को मारने और काटने की हिम्मत तभी आदमी के अन्दर पनपती है,जब वह सभी तरह से अपने को मार चुका होता है,मन से मरा हुआ खतरनाक हो जाता है,किसी की लगन,पंचम या नवम में मंगल शनि का असर होता है,तो वह मंगल की जगह क्रूर और शनि से कुछ भी नही समझने वाला माना जाता है,मंगल का काम काटना,और शनि का काम कर्म करना भी माना जाता है,मंगल लगन का और आठवें भाव का मालिक होता है,और शनि दसवें और ग्यारहवें भाव का मालिक होता है,क्रूरता करने से शरीर और पिता और परिवार का चैन खत्म हो जाता है,कर्म भाव बेकार हो जाता है,किसी भी प्रकार से जीवन का सुख नही पनप पाता है,जो देखो डर कर ही बोलता है,किसी के अन्दर प्रेम से बोलने की हिम्मत नही होती है,प्रेम की नदी का कभी दर्शन नही होता है,आदमी अपने को और क्रूर बनाने के लिये अपनी शक्ति को और अधिक और इकट्टी करने की फ़िराक में रहता है,और इस काम के लिये वह बेवजह प्राणियों की हत्या किया करता है,जानवरों को काटकर खा जाता है,अपने और दुनिया के बारे में कोई ज्ञान नही रहे इसलिये वह शराब पीता है,और फ़िर उसके मन में जो आता है,करता है,समय कभी किसी का बराबर नही रहता है,हिटलर और नैपोलियन जैसे क्रूर लोग इस दुनिया में आ चुके है,लेकिन किसी को आदर के साथ नही पुकारा जाता है,जबकि शांति और प्रेम के पुजारी भगवान बुद्ध,ईशामसीह,और गांधी को कितने आदर से जाना जाता है,प्रेम को विद्वान ही समझ सकता है,ऐसी कोई बात नही है,प्रेम को एक पशु भी समझ सकता है.लालकिताब में क्रूरता करने वाले को आचार संहिता में लाने का कोई अधिकार नही दिया है.लालकिताब को जानने का वही अधिकारी है,जिसके अन्दर लालकिताब की आचार संहिता मे खरा उतरने की पूरी योग्यता है.

६. ईश्वर पर विश्वास रखें

जगत को उत्पन्न और विनाश की तरफ़ लेजाने वाला केवल ईश्वर है,इसके अलावा अन्य सत्ता किसी प्रकार से अपने इरादों में सफ़ल नही हो सकती है,जिसने ईश्वर को सर्वोत्तम सत्ता का मालिक समझ लिया है,उसे इस जीवन में कभी हार नही झेलनी पडेगी,ऐसा मेरा विश्वास है.लालकिताब में ईश्वर से आगे कुछ नही कहा गया है,सभी बातें ईश्वर की तरफ़ ही ले जाने वाली है,जिस प्रकार से एक महात्मा अपने प्रवचनों के द्वारा साधारण आदमी को धर्म की तरफ़ ले जाता है,उसी प्रकार से लालकिताब भी हर प्रकार के किये जाने वाले उपाय के द्वारा ईश्वर की तरफ़ ही लेजाने का उपाय करती है,हर आदमी को सोच लेना चाहिये कि वह अपनी मर्जी से इस संसार में नही आया है,उसे भी किसी ने यहां पर किसी न किसी काम के लिये भेजा हुआ है,आदमी तभी दुखी होता है,जब वह सोचता है कि उसी को सभी काम करने पडेंगे.जब कि करने वाला कोई और ही है,अगर आदमी की बस की बात होती तो वह भगवान को कभी मानता ही नही,फ़िजिकल रूप से चाहे वह कुछ भी कर ले,आदमी में कृत्रिम अंग आदि डालकर उनका संचालन कर ले लेकिन वह इन्सान में सांस कहां से डालेगा,जब कि पता है,कि हर आदमी आक्सीजन लेता है,और कार्बनडाई आक्साइड छोडता है,तो फ़िर वह पम्पिन्ग के द्वारा आदमी के ह्रदय को क्यों नही चला पाता है,खून की एक बूंद को क्यों नही बना पाता है,आदि बातों के द्वारा पता चलता है,कि इन्सान के हाथ में वह सत्ता कभी नही आ सकती है,जिसे भगवान ने अपने हाथों के अन्दर संभाल रखा है.

७ देवी देवताओं की पूजा श्रद्धा पूर्वक करें.

देवी देवता सभी के साथ है,आंख के द्वारा जो भी देखा जाता है,और कानो के द्वारा जो भी सुना जाता है,अथवा शरीर की इन्द्रियों के किसी भी प्रकार से महसूस किया जाता है,वह सब किसी न किसी प्रकार की शक्ति के ऊपर ही निर्भर करता है,आज के वैज्ञानिक युग में यह तो पता चल ही चुका है,कि हर भाग जुडकर एक बडी मशीन का रूप लेती है,और मशीन का एक भाग अगर निष्क्रिय हो जावे,तो पूरी मशीन पर फ़र्क पडता है,और हर भाग का एक एक कंट्रोल होता है,उसी के द्वारा पूरी मशीन को संभाला जाता है,भौतिक रूप से हर भाग का देखना और उसे संभालना कन्ट्रोल कहलाता है,मगर जो कुछ इन्सानी दिमाग के अन्दर कार्य किया जाता है,वह मात्र कुछ द्रव पदार्थों के द्वारा संभव नही है,उसे संभव करने के लिये कुछ शक्तियां काम करती है,और उन शक्तियों का बढाना या घटाना पराशक्तियों के बस की बात होती है,उन पराशक्तियों को विभिन्न रूपों में जाना जाता है,ऋग्वेद में सभी शक्तियों का वर्णन किया गया है,और हर बात को किसी न किसी देवता के द्वारा सम्बन्धित बताया गया है,जो उनको मानता है,उसका भी वह देवता काम करता है,और जो नही मानता है,उसका भी वह देवता काम करता है,किसी प्रकार से किसी देवता के रुष्ट होने पर अन्दाज किया जा सकता है,कि कभी सुनाई देना बन्द हो जाता है,कभी दिखाई देने में दिक्कत आती है,इन सबका काम तो वैज्ञानिक कर लेते है,अगर किसी प्रकार से समझने में दिक्कत आती है तो डाक्टर भी परेशान हो जाते है,इस सबका कारण हर अंग का अलग अलग देवता है,और जो भी देवता तुम्हारे से जुडा हुआ है,वह केवल माता से जुडा अधिक माना जाता है,पिता से और पिता के पिता से भी अपना कुछ न कुछ सम्बन्ध रखता है,इस लिये परिवार की मर्यादाओं के अनुसार अपने देवी देवताओं की पूजा पाठ में कभी भी हुज्जत नही करना चाहिये.

८. मांस मछली न खायें

हालांकि जगत में किसी प्रकार से भी जीव बिना जीव के भक्षण के नही रह सकता है,लेकिन जिस जीव में तुम्हारे जैसा ही खून निकले उसे खाने से बचाव करना चाहिये,कारण जो कोशिकायें तुम्हारे अन्दर काम करती है,और जो तुम्हारे अन्दर लाल रंग का खून पैदा करती है,वही कोशिकायें सामने वाले प्राणी के अन्दर भी काम करती है,जिस प्रकार से तुम्हारे अन्दर ह्रदय धडकता है,उसी प्रकार से उन प्राणियों के अन्दर ह्रदय धडकता है,जैसे तुम्हे मरने और चोट से डर लगता है,उसी प्रकार से उनको भी डर लगता है,जो तुम्हारी तरह से सोते है,जो तुम्हारी तरह से जगते है,जिनके अन्दर तुम्हारे जैसा ही प्यार अपने बच्चों के प्रति होता है,और जो किसी प्रकार अजीब सी आवाज से डरते है,जिनके अन्दर अपने बचाव के लिये भागना आता है,उनको खाना किस् प्रकार से ठीक है,अगर किसी को मारते वक्त तुम्हारे अन्दर दया नही आती,तो इसका मतलब तुम्हारा ह्रदय उस जानवर जैसा है,जिसे दूसरे जानवर को मारते वक्त मजा आता है,या ताव आता है,इन्सान के अन्दर दिमाग नाम का हथियार दिया गया है,संसार में मनुष्य के भोजन के लिये पत्ते घास और अनाजों का संग्रह किया गया है,वनस्पति अपने स्वरूप को लेकर हमेशा तैयार खडी है,और हर जगह पर अपनी बहुतायत केवल इसी लिये बना कर रखती है,कि इन्सानों का उदर पोषण हो सके,और वही इन्सान अगर किसी की पीर न समझ कर अपने स्वाद के लिये उन्ही को मारता है,जिनके अन्दर दर्द होता है,जो मारे जाते वक्त करुण चीत्कार करते है,और इन्सान अपने उदर पोषण के लिये बडे बडे कमेले चलाता है,कसाई खानो के लिये जगह बनाता है,इस प्रकार की दरिन्दगी क्या इन्सानी सिफ़्त के लिये उपयुक्त है,जानवर का अंश अगर खाया जायेगा,तो उसी के जैसी बुद्धि दिमाग के तन्तुओं के अन्दर जाकर अपना काम करेगी,बकरा खाने के बाद आम आदमी के अन्दर बकरा जैसी ही कामुकता आती है,वह दिन रात जिस प्रकार से बकरा बकरियों के झुन्ड में अपने काम को शान्त करने के लिये घूमा करता है,उसी प्रकार से उसे खाने के बाद इन्सान भी अपने आसपास के वातावरण में अपने काम को शांत करने के लिये घूमा करता है.जो बच्चे मां का दूध कम पीते है,और जानवरों के दूध पर निर्भर रहते है,उनकी कार्यशैली में जानवरों जैसा ही व्यवहार देखा जा सकता है,वे बचपन से ही आक्रामक होते है,उन्हे पता नही होता कि दया क्या होती है,और जिसे वे मारते हैं उसे मारते ही जाते है,तो जानवर को खाने के बाद आदमी की भी सिफ़्त जानवर जैसी हो जाती है,वह भी अपने को अपने आसपास जानवर जैसा ही बलशाली दिखने की कोशिश करता है,और अपने बल को विभिन्न रूपों में प्रदर्शित करने की कोशिश करता है.लालकिताब में कहा गया है,कि शनि का काम न्याय करना है,जो पीडा आपने किसी को दी है,वह किसी भी रूप में आपको ही भुगतनी पडेगी,उसे भोगने के लिये कोई दूसरा नही सामने आयेगा,इसलिये कभी भी किसी को मार कर मत खाओ,किसी को आहत करने से पेट अगर भरता है,तो एक मुट्टी मिट्टी की खाकर अपना समय निकाला जा सकता है,लेकिन किसी को आहत करने के बाद केवल अपने ही परिवार और अपना सफ़ाया करने के अलावा कुछ भी नही है.जीवों पर दया का भाव रखने के कारण कितने ही संत अपना उद्धार करने के बाद दूसरों का उद्धार कर गये है.

९.शराब न पियें

राहु का नाम सबने सुना होगा,राहु का दूसरा मतलब होता है,रूह और रूह कभी भी जिन्दा आदमी के अन्दर अपना अच्छा प्रभाव नही दे सकती है,एक म्यान में जिस प्रकार से दो तलवार नही रह सकती है,इसी प्रकार से एक शरीर के अन्दर दो आत्मायें नही रह सकती है,शराब जब बनाई जाती है,तो पहले किसी तरह किसी भी वस्तु को सडाया जाता है,और उसके अन्दर असंख्य कीडों को पैदा किया जाता है,जैसे ही असंख्य कीडे पैदा हो जाते है,उन जिन्दा कीणों को खमीर के रूप में आग की भट्टियों के ऊपर चढाया जाता है,और फ़िर उन कीडों का आसवन करने के बाद जो आसुत जल निकलता है,वह ही शराब कहलाती है,उस शराब रूपी पानी को लोग पीकर अपनी आत्मा को अपने शरीर से बाहर निकाल देते है,और उन करोंडो कीडों के उस आसुत जल को अपने में भर कर अपने शरीर के खून के जिन्दा कणों को बिलकुल चेतना शून्य कर देते है,चेतना शून्य होकर खून के कण बिना किसी कारण के शरीर के अन्दर अपना भ्रमण करते है,और आदमी की इन्सानियत का तो पता नही होता,केवल इन कीणों की आत्मा रूपी मदिरा शरीर के अन्दर अपना निवास करती है,वे शराब के कण शरीर को यह नही पता लगने देते कि वह क्या कर रहा है,और कहां पर है,किससे क्या कह रहा है,और किस के साथ क्या कर रहा है,लगातार पान करने के बाद शरीर के रुधिर कण उस शराब के आदी हो जाते है,और हमेशा एक आलसी व्यक्ति की तरह से अपने को काम करने से असमर्थ पाते है,जब भी कार्य करने का और कुछ सही कहने का दिमाग होता है,तो वे अपने लिये शक्ति का साधन ढूंडने का कार्य शराब के द्वारा करते है,शराब पीकर आदमी मांस को आराम से खाता है,नमक और मिर्च को लगाकर अधिक मशाले डाल कर शोरबा को अधिक पसंद करता है,कभी कभी इसी बात की पार्टियों का इन्तजाम किसी प्रकार के गलत कामो को करने के लिये की जाती है,शराब को पिलाकर पुराने जमाने के राजा सिपाहियों की बुद्धि को चेतनाहीन कर देते थे,और चेतनाहीन होने के बाद उनको पता नही होता था कि वे जिसे मार रहे है,वह भी एक आदमी है,और धन और राज्य के मान के लिये लोभ के लिये जान से मारने से वे नही चूकते थे,राजाओं का काम होता था कि किसी प्रकार से अपने राज्य और अपने स्वार्थ के लिये जनता को मारना और उससे अधिक से अधिक कर वसूल लर अपने ऐशो आराम के साधन जुटाना,शराब जिन्दा आदमी को शैतान बना देती है,शराब के द्वारा आदमी के अन्दर जो नशा होता है,वही राहु का रूप है,राहु का मतलब है,कि रूह को परेशान करना,किसी भी काम में रास्ता रोकना,लालकिताब ने राहु का कार्य दो लोगों को लडाकर उस लडाई का मजा देखने से बताया है,राहु को ससुराल से जोड कर बताया है,जिस प्रकार आदमी अपनी ससुराल में जाकर एक अजीब से उन्माद के अन्दर भर जाता है,और उसे किसी भी बात को सहन करने की हिम्मत नही होती है,उसी प्रकार से शराब को पीकर आदमी को सहन शक्ति नही होती वह शराब के नशे में क्रूर से क्रूर काम कर जाता है,शराब के नशे में आदमी आदमी को मार देता है,और जब नशा उतरता है,तब उसे पछतावा होता है.कि अगर वह शराब नही पीता तो उसके द्वारा किसी आदमी का कत्ल तो नही होता,शराब पीने के बाद कितनी ही गृहस्थियां बरबादी के कगार पर चली जाती है,बच्चे भटक जाते है,लोक में बदनामी मिलती है,पत्नी को शराब के नशे में भोगने के बाद वह कितनी ही भयंकर बीमारियों से परेशान होती है,आदमी शराब के नशे के अन्दर केवल औरत को मार ही नही डालता है,बाकी का उसके अन्दर कुछ बचता नही है.
इसके अलावा लालकिताब की आचार संहिता में इक्कीस नियम और है,जिनके अन्दर सलीके से कपडे पहिनना,कान और नाक को छिदवाना,नाक को हमेशा साफ़ रखना,दांतों को साफ़ रखना,कीकर की दातुन करना,संयुक परिवार में रहना,ससुराल से बनाकर रखना,कन्यायों की पूजा करना,उन्हे उत्तम भोजन और वस्त्र देकर प्रसन्न रखना,बहिन बेटी को मीठी चीजें देना,जिस प्रकार से माता की सेवा और सुश्रूषा करते है,उसी प्रकार से पत्नी की देखभाल करना,भाभी की सेवा करना,परिवार के सदस्यों की आज्ञा का पालन करना,मुफ़्त में किसी से कुछ भी नही लेना,नि:सन्तान की फ़ूती कौडी भी नही लेना,बडो के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना,दक्षिणामुखी घर के अन्दर निवास नही करना,घर की छत में छेद नही रखना,घर के अन्दर कच्ची जगह अवश्य रखना,विकलांगों को भोजन देना और उनकी सहायता करना,पडौस में कोई असहाय विधवा हो तो उसकी यथा सम्भव सहायता करना,मनुष्य पर निर्भर रहने वाले जीव जैसे कुत्ता गाय और बन्दरों को खाना देना,काणे और गंजे आदमी से हमेशा सावधान रहना,इसके अलावा और भी काफ़ी बाते है,अगर उन पर ध्यान दिया जाये तो लालकिताबकार की मेहनत सफ़ल मानी जा सकती है.
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